एक ग़ज़ल। एक ग़ज़ल।
चंद्र स्वार्थी है कमाल का ... चंद्र स्वार्थी है कमाल का ...
किसी और दिन तुम देना मुझे धमकी चाँद रौशन हुआ तुम खोलो तो खिड़की। किसी और दिन तुम देना मुझे धमकी चाँद रौशन हुआ तुम खोलो तो खिड़की।
मैं घर जाकर आता हूँ , माँ को ख़बर किये देता हूँ छाता भी ले आता हूँ !! मैं घर जाकर आता हूँ , माँ को ख़बर किये देता हूँ छाता भी ले आता हूँ !!
हथेली का चांद...। हथेली का चांद...।
भूल मत पर रात तो खुद एक टीका है, वो चाँद ही है जिसे लगता है ग्रहण...! भूल मत पर रात तो खुद एक टीका है, वो चाँद ही है जिसे लगता है ग्रहण...!